Sunday, March 27, 2016

देखिये इश्क में अब कौन सा जादू निकले- महबूब सोनालिया

देखिये इश्क में अब कौन सा जादू निकले।
मेरे अंदाज़े बयां से तेरी खुशबू निकले।

आज़माइश पे उतर आये सराबो की अगर
रेत से प्यास को पीते हुए आहू निकले।

हाथ शामिल था मेरे झुर्म में जिन लोगोका।
फैसला करने मेरा उनके तराजू निकले।

उनकी ख़ुश्बू से फ़ज़ा सारी महक उठती है।
जब भी लहराते हुए अपने वो गेसू निकले

नींद जब बोझ बढ़ा देती है पलको पे मेरी:
तब ग़ज़ल कहने के भी ज़हन से पहलू निकले

जब मिरे कान्धे से कन्धे को मिलाये बेटा।
मैंने महसूस किया तब मिरे बाज़ू निकले

ज़िन्दगी मेरी अन्धेरों से निकल सकती है
मेरी यादों के उजालों से अगर तू निकले

जम गया है मेरी पुतली पे कोई सदमा यूँ।
मैंने चाहा तो बहुत फिर भी न आंसू निकले
-महबूब सोनालिया

Friday, March 25, 2016

"रिश्ते"

'रिश्तों कि इस कश्म कश मे तुट गये  हम,
सबको याद करते करते खुद को भूल गये हम"
'हालात ने इतना बेबस कर दिया कि,
किनारे पे पहुँचकर भी डुब गये हम"
-महेन्द्र झणकाट

Thursday, March 24, 2016

रंग

छुड़ा लिए हैं रंग सब,
धोकर अपने  अंग !..
दिल पर जो तू मल गया,
वो ना उतरा रंग ! ..
-विजेंद्र शर्मा

रंग-ऐ-गुलाल

लो खत्म हुई रंग-ऐ-गुलाल की शोखियां |

चलो यारो फिर बेरंग दुनिया में लौट चले...|

कान्हा

"कान्हा मत मारो पिचकारी
कोई रंग न चढ़ी,
रंगी मेरी चूनर प्रेम रंग सो
दूजो रंग न चढ़ी.
बरसे गुलाल रंग मोरे अंगनवा
अपने ही रंग में रंग दे मोहे सजनवा."
~ Ankyta Hirpara

Thursday, March 17, 2016

वतन

मेरे मज़हब से न तौल
वतन से मुहब्बत मेरी...

सजदा भी करता हूँ तो
जमीं चूमता हूँ मैं..

 इश्क 

गजब का सबक दिया है ऐ इश्क तूने हमे,

जहाँ पल भी ना गुजरे वहाँ जिंदगी गुजार रहे है !

गुलाबी

बाज़ार के रंगों से रंगने की मुझे जरुरत
नही,
किसी की याद आते ही ये चेहरा गुलाबी हो जाता है..

भवानीप्रसाद मिश्र

कठिन है
अँधेरे को
आत्मा से
अलग करना

क्योंकि
दोनों कि आँख
आख़िर
उजाले
पर है!
-भवानीप्रसाद मिश्र

भवानीप्रसाद मिश्र

कल हमारे चाँद सूरज और तारे
बदल जायेंगे लगेंगे अमित प्यारे
टूट जायेगा हमारा कड़ा घेरा
और होगा मुक्त कल पहला सबेरा
यह सबेरा सार्थक जिस बात से हो
काम वह अपना शुरू इस रात से हो
-भवानीप्रसाद मिश्र

वसीम बरेलवी

कहाँ तक आँख रोएगी कहाँ तक किसका ग़म होगा
मेरे जैसा यहाँ कोई न कोई रोज़ कम होगा

तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना रो चुका हूँ मैं
कि तू मिल भी अगर जाये तो अब मिलने का ग़म होगा

समन्दर की ग़लतफ़हमी से कोई पूछ तो लेता ,
ज़मीं का हौसला क्या ऐसे तूफ़ानों से कम होगा

मोहब्बत नापने का कोई पैमाना नहीं होता ,
कहीं तू बढ़ भी सकता है, कहीं तू मुझ से कम होगा
-वसीम बरेलवी

भवानीप्रसाद मिश्र

मैं जो हूँ
मुझे वही रहना चाहिए

यानी
वन का वृक्ष
खेत की मेंड़
नदी कि लहर
दूर का गीत
व्यतीत
वर्तमान में उपस्थित
भविष्य में
मैं जो हूँ
मुझे वही रहना चाहिए

तेज गर्मी
मूसलाधार बारिश
कड़ाके की सर्दी
खून की लाली
डूब का हरापन
फूल की ज़र्दी

मैं जो हूँ
मुझे वही रहना चाहिए
मुझे अपना
होना
ठीक ठाक सहना चाहिए
तपना चाहिए

अगर लोहा हूँ
तो हल बनने के लिए
बीज हूँ
गड़ना चाहिए
फल बनने के लिए

मैं जो हूँ
मुझे वही बनने चाहिए

धारा हूँ अन्तःसलिला
तो मुझे कुएं के रूप में
खनना चाहिए
ठीक ज़रूरतमंद हाथों में

गान फैलाना चाहिए मुझे
अगर मैं आसमान हूँ

मगर मैं
कब से ऐसा नहीं
कर रहा हूँ
जो हूँ
वही होने से दर रहा हूँ
-भवानीप्रसाद मिश्र

Monday, March 14, 2016

ज़िन्दगी

ज़िन्दगी की हकीकत को बस इतना जाना है...
दर्द में अकेले हैं और ख़ुशी में जमाना है...

Sunday, March 13, 2016

दर्द

तुम पास हो तो कोई दर्द नहीं,

तुम पास नहीं तो कोई दवा नहीं

 दिल

लोगों मै और हम मे बस इतना फर्क है की लौग
दिल को दर्द देते है,
और हम दर्द देने वाले को दिल देते है...

शब्द जोङ देँ टूटे मन, शब्द ही प्यार बढाएं

"शब्द संभाले बोलिए, शब्द के हाथ न पावं!
"एक शब्द करे औषधि, एक शब्द करे घाव!
.
"शब्द सम्भाले बोलियेे, शब्द खीँचते ध्यान!
"शब्द मन घायल करेँ, शब्द बढाते मान!
.
"शब्द मुँह से छूट गया, शब्द न वापस आय..
"शब्द जो हो प्यार भरा, शब्द ही मन मेँ समाएँ!
.
"शब्द मेँ है भाव रंग का, शब्द है मान महान!
"शब्द जीवन रुप है, शब्द ही दुनिया जहान!
.
"शब्द ही कटुता रोप देँ, शब्द ही बैर हटाएं!
"शब्द जोङ देँ टूटे मन, शब्द ही प्यार बढाएं.....!!

Thursday, March 10, 2016

रंग

"ज़माने के लिए तो कुछ दिन बाद होली है...
लेकिन मुझे तो रोज़ रंग देती हैं यादें तेरी..!

Tuesday, March 8, 2016

शरीक

सारा शहर उस के
'जनाजे' में था शरीक..

'तन्हाइयों' के खौफ से
जो शख्स मर गया..

खाली कागज...

बहुत रोई होगी वो खाली कागज देखकर...

ख़त में उसने पुछा था "जिंदगी" कैसे बीत रही है।

मोरारी बापु

जिन्दा है तो चुप करते है,
मरने के बाद धुप करते है !
~ मोरारी बापु

Sunday, March 6, 2016

सांसों की वसीयत

तुमने आँखों से मेरी आँखों पर दस्तखत क्या किये....

हमने हमारी सांसों की वसीयत तुम्हारे  नाम करदी

Saturday, March 5, 2016

दर्द

दर्द कितना खुशनसीब है
जिसे पा कर लोग अपनों को याद करते हैं,
दौलत कितनी बदनसीब है
जिसे पा कर लोग अक्सर अपनों को भूल जाते है..!!

Friday, March 4, 2016

जब भी क़िस्सा अपना पढना,

जब भी क़िस्सा अपना पढना,
पहले चेहरा चेहरा पढना ।

तन्हाई की धूप में तुम भी,
बैठ के अपना साया पढना ।

आवाज़ों के शहर में रहकर,
सीख गया हूँ लहजा पढना ।
-

-”काज़िम” जरवली

प्रेम एटले.....


नयनथी जागेली प्ण 
होंठो पर आवीने अटकी गयेली
असंख्य उर्मिओना थनगनाटनी साथे वलोवातु भोलु ह्रदय.....

-विपुल देसाइ

मोहब्बत

मोहब्बत जिंदगी बदल देती है
मिल जाए तो भी
ओर ना मिले तो भी.

Wednesday, March 2, 2016

बहुत रुलाया उस बेवाफा ने मुझे,
ऐ मौत अगर तू - साथ - दे,
तो उसको भी रुलाने का इरादा है...

પ્રેમ ડાહ્યા માણસોનું ગાંડપાણ છે,
ને ગાંડા માણસોનું ડહાપણ છે.
ડૉ. હરીશ પારેખ

Tuesday, March 1, 2016

महसूस

"इश्क 'महसूस' करना भी इबादत से कम नहीं,

ज़रा बताइये  'छू कर' खुदा को किसने देखा है

नफरत के बाज़ार में

नफरत के बाज़ार में जीने का अलग ही मज़ा है,
लोग रुलाना नहीं छोड़ते हम हसना नहीं छोड़ते..

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फ़ासले तो बढ़ा रहे हो मगर इतना याद रखना, मुहब्बत बार बार इंसान पर मेहरबान नहीं होती.

Sad love

��मुहब्बतों में भी दुश्वारियां निकलती है, वफ़ा के नाम पे लाचारियाँ निकलती हैं...!!!

Sad love

Log Kanton se Bach Ke Chaltey Hai ,
Hum Ne Phoolon Se "Zakhm" Khaye Hai ,
Tum Gairo Ki Bat Krtey Ho ,
Hum Ne apney Bhi Azmaye Hai..

अमृता प्रीतम की कुछ कवितायें Poems By Amrita Pritam

अमृता प्रीतम की कुछ कवितायें Poems By Amrita Pritam

एक मुलाकात

मैं चुप शान्त और अडोल खड़ी थी
सिर्फ पास बहते समुन्द्र में तूफान था……फिर समुन्द्र को खुदा जाने क्या ख्याल आया
उसने तूफान की एक पोटली सी बांधी
मेरे हाथों में थमाई
और हंस कर कुछ दूर हो गया
हैरान थी….
पर उसका चमत्कार ले लिया
पता था कि इस प्रकार की घटना
कभी सदियों में होती है…..

लाखों ख्याल आये
माथे में झिलमिलाये

पर खड़ी रह गयी कि उसको उठा कर
अब अपने शहर में कैसे जाऊंगी?

मेरे शहर की हर गली संकरी
मेरे शहर की हर छत नीची
मेरे शहर की हर दीवार चुगली

सोचा कि अगर तू कहीं मिले
तो समुन्द्र की तरह
इसे छाती पर रख कर
हम दो किनारों की तरह हंस सकते थे

और नीची छतों
और संकरी गलियों
के शहर में बस सकते थे….

पर सारी दोपहर तुझे ढूंढते बीती
और अपनी आग का मैंने
आप ही घूंट पिया

मैं अकेला किनारा
किनारे को गिरा दिया
और जब दिन ढलने को था
समुन्द्र का तूफान
समुन्द्र को लौटा दिया….

अब रात घिरने लगी तो तूं मिला है
तूं भी उदास, चुप, शान्त और अडोल
मैं भी उदास, चुप, शान्त और अडोल
सिर्फ- दूर बहते समुन्द्र में तूफान है…..

याद

आज सूरज ने कुछ घबरा कर
रोशनी की एक खिड़की खोली
बादल की एक खिड़की बंद की
और अंधेरे की सीढियां उतर गया….

आसमान की भवों पर
जाने क्यों पसीना आ गया
सितारों के बटन खोल कर
उसने चांद का कुर्ता उतार दिया….

मैं दिल के एक कोने में बैठी हूं
तुम्हारी याद इस तरह आयी
जैसे गीली लकड़ी में से
गहरा और काला धूंआ उठता है….

साथ हजारों ख्याल आये
जैसे कोई सूखी लकड़ी
सुर्ख आग की आहें भरे,
दोनों लकड़ियां अभी बुझाई हैं

वर्ष कोयले की तरह बिखरे हुए
कुछ बुझ गये, कुछ बुझने से रह गये
वक्त का हाथ जब समेटने लगा
पोरों पर छाले पड़ गये….

तेरे इश्क के हाथ से छूट गयी
और जिन्दगी की हन्डिया टूट गयी
इतिहास का मेहमान
मेरे चौके से भूखा उठ गया….

हादसा

बरसों की आरी हंस रही थी
घटनाओं के दांत नुकीले थे
अकस्मात एक पाया टूट गया
आसमान की चौकी पर से
शीशे का सूरज फिसल गया

आंखों में ककड़ छितरा गये
और नजर जख्मी हो गयी
कुछ दिखायी नहीं देता
दुनिया शायद अब भी बसती है

आत्ममिलन

मेरी सेज हाजिर है
पर जूते और कमीज की तरह
तू अपना बदन भी उतार दे
उधर मूढ़े पर रख दे
कोई खास बात नहीं
बस अपने अपने देश का रिवाज है……

शहर

मेरा शहर एक लम्बी बहस की तरह है
सड़कें – बेतुकी दलीलों सी…
और गलियां इस तरह
जैसे एक बात को कोई इधर घसीटता
कोई उधर

हर मकान एक मुट्ठी सा भिंचा हुआ
दीवारें-किचकिचाती सी
और नालियां, ज्यों मूंह से झाग बहती है

यह बहस जाने सूरज से शुरू हुई थी
जो उसे देख कर यह और गरमाती
और हर द्वार के मूंह से
फिर साईकिलों और स्कूटरों के पहिये
गालियों की तरह निकलते
और घंटियां हार्न एक दूसरे पर झपटते

जो भी बच्चा इस शहर में जनमता
पूछता कि किस बात पर यह बहस हो रही?
फिर उसका प्रश्न ही एक बहस बनता
बहस से निकलता, बहस में मिलता…

शंख घंटों के सांस सूखते
रात आती, फिर टपकती और चली जाती

पर नींद में भी बहस खतम न होती
मेरा शहर एक लम्बी बहस की तरह है….

भारतीय़ ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित अमृता प्रीतम चुनी हुई कवितायें से साभार

नारी तुम हो सबकी आशा

नारी तुम हो सबकी आशा

किन शब्दों में दूँ परिभाषा ?
नारी तुम हो सबकी आशा.

सरस्वती का रूप हो तुम
लक्ष्मी का स्वरुप हो तुम
बढ़ जाये जब अत्याचारी
दुर्गा-काली का रूप हो तुम.

किन शब्दों में दूँ परिभाषा ?
नारी तुम हो सबकी आशा.

खुशियों का संसार हो तुम
प्रेम का आगार हो तुम
घर आँगन को रोशन करती
सूरज की दमकार हो तुम.

किन शब्दों में दूँ परिभाषा ?
नारी तुम हो सबकी आशा.

ममता का सम्मान हो तुम
संस्कारों की जान हो तुम
स्नेह, प्यार और त्याग की
इकलौती पहचान हो तुम.

किन शब्दों में दूँ परिभाषा ?
नारी तुम हो सबकी आशा.

कभी कोमल फूल गुलाब सी
कभी शक्ति के अवतार सी
नारी तेरे रूप अनेक
तू ईश्वर के चमत्कार सी.

किन शब्दों में दूँ परिभाषा ?
नारी तुम हो सबकी आशा.

By Monika Jain 'पंछी'

किसी ज्योतीषीने कहा यह साल अच्छा है,

किसी ज्योतीषीने कहा यह साल अच्छा है,
दिलको खुश रखनेका यह खयाल अच्छा है,

हाथ की लकिरोमें नही है जीवनभरका साथ,
दिलमें हरपल संग रहनेका खयाल अच्छा है,

खुश्बु आती है फिजाओमें फुल-ए-गुलाबकी,
महक बन उड जानेका यह खयाल अच्छा है,

अंम्बर भी रोता है सावनमें धराके प्यार में,
आंखोकी बरसातमें नहानेका खयाल अच्छा है,

सुकुन मीलता है रुहको मीलनके उस पलमें,
दिलको यादोसे सहलाने का खयाल अच्छा है,

मान जाने का वादा करके रुठना है फितरत,
रुठे हुएको मना लेने का यह खयाल अच्छा है,

कोइ तबीब दवा दे न सके लगा है ऐसा रोग,
हर घावको नासुर बना देनेका खयाल अच्छा है,

प्यार-ए-गुफ्तगु करना भी उसे रास ना आया,
मौन रहकर भी प्यार करनेका खयाल अच्छा है,

खतम हो जब सांसे,पहोच जाये कब्र पर 'नीशीत',
दुपट्टाका कफन औढ सो जानेका खयाल अच्छा है ।

नीशीत जोशी

फ़राज़

गेसू-ए-शाम में एक सितारा एक ख़याल
दिल में लिए फिरते हैं तुम्हारा एक ख़याल

एक मुसाफ़त, एक उदासी, एक 'फ़राज़'
एक तमन्ना, एक शरारा, एक ख़याल -

�� Faraz

तू दरिया का रास्ता,

तू दरिया का रास्ता,
मैं हूं तेरी प्यास,
मैं हूं तेरी खोज में ,
तू है मेरे पास

निदा फाजली