ये मस्तो की प्रेम सभा है, यहा संभलकर आना जी......
जब भी क़िस्सा अपना पढना, पहले चेहरा चेहरा पढना ।
तन्हाई की धूप में तुम भी, बैठ के अपना साया पढना ।
आवाज़ों के शहर में रहकर, सीख गया हूँ लहजा पढना । -
-”काज़िम” जरवली
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