ये मस्तो की प्रेम सभा है, यहा संभलकर आना जी......
'रिश्तों कि इस कश्म कश मे तुट गये हम, सबको याद करते करते खुद को भूल गये हम" 'हालात ने इतना बेबस कर दिया कि, किनारे पे पहुँचकर भी डुब गये हम" -महेन्द्र झणकाट
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