Thursday, March 17, 2016

भवानीप्रसाद मिश्र

मैं जो हूँ
मुझे वही रहना चाहिए

यानी
वन का वृक्ष
खेत की मेंड़
नदी कि लहर
दूर का गीत
व्यतीत
वर्तमान में उपस्थित
भविष्य में
मैं जो हूँ
मुझे वही रहना चाहिए

तेज गर्मी
मूसलाधार बारिश
कड़ाके की सर्दी
खून की लाली
डूब का हरापन
फूल की ज़र्दी

मैं जो हूँ
मुझे वही रहना चाहिए
मुझे अपना
होना
ठीक ठाक सहना चाहिए
तपना चाहिए

अगर लोहा हूँ
तो हल बनने के लिए
बीज हूँ
गड़ना चाहिए
फल बनने के लिए

मैं जो हूँ
मुझे वही बनने चाहिए

धारा हूँ अन्तःसलिला
तो मुझे कुएं के रूप में
खनना चाहिए
ठीक ज़रूरतमंद हाथों में

गान फैलाना चाहिए मुझे
अगर मैं आसमान हूँ

मगर मैं
कब से ऐसा नहीं
कर रहा हूँ
जो हूँ
वही होने से दर रहा हूँ
-भवानीप्रसाद मिश्र

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