Saturday, December 31, 2016

अकेली चल रही हूँ जल रही हूँ तुम नहीं आना - Megi Asnani

अकेली चल रही हूँ जल रही हूँ तुम नहीं आना
मैं ग़म की परवरिश में पल रही हूँ तुम नहीं आना

तुम्हारे नाम की मेंहदी लगाकर खूब महके थे
'मैं उन हाथो को बैठी मल रही हूँ 'तुम नहीं आना

मुझे ही शौक़ था तुमकोे मेरी आँखों में रखने का
सो अब मैं आईनों से टल रही हूँ तुम नहीं आना

मसीहा कुछ दिनों का और है ये खाकस्तर भी
मैं अपने आप को ही खल रही हूँ तुम नहीं आना

जहाँ जिसके किनारे हम कभी इक साथ बैठे थे
उसी नदिया के जल में रल रही हूँ तुम नहीं आना
- Megi Asnani

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