ये मस्तो की प्रेम सभा है, यहा संभलकर आना जी......
मैं वो सहरा जिसे पानी की हवस ले डूबी तू वो बादल जो कभी टूट के बरसा ही नहीं
- सुल्तान अख़्तर
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