Friday, December 2, 2016

बेकल उत्साही साहब

वो तो  मुद्दत से  जानता है  मुझे
फिर भी हर इक से पूछता है मुझे

रात  तनहाइयों  के   आंगन  में
चांद तारों  से  झाँकता  है  मुझे

सुब्ह  अख़बार  की  हथेली पर
सुर्ख़ियों  मे  बिखेरता  है  मुझे

होने  देता  नही  उदास   कभी
क्या कहूँ कितना चाहता है मुझे

मैं हूँ बेकल  मगर  सुकून से हूँ
उसका ग़म भी सँवारता है मुझे

- बेकल उत्साही साहब

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