वो तो मुद्दत से जानता है मुझे
फिर भी हर इक से पूछता है मुझे
रात तनहाइयों के आंगन में
चांद तारों से झाँकता है मुझे
सुब्ह अख़बार की हथेली पर
सुर्ख़ियों मे बिखेरता है मुझे
होने देता नही उदास कभी
क्या कहूँ कितना चाहता है मुझे
मैं हूँ बेकल मगर सुकून से हूँ
उसका ग़म भी सँवारता है मुझे
- बेकल उत्साही साहब
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