ये मस्तो की प्रेम सभा है, यहा संभलकर आना जी......
न हुआ सूर, न तुलसी, न मैं कबीर हुआ इश्क उसका नहीं तेरा था, सो फ़कीर हुआ
न तू आया, न तेरा ख्वाब, न तेरा ज़िक्र न मैं रोया, न मैं सोया, न मैं मीर हुआ... - मधुप मोहता
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