Saturday, November 19, 2016

ग़ज़ल : रघुनंदन शर्मा

ये   जो    हँसना   रोना   है
पल दो  पल का   होना  है

उसका कुछ तो ज़िक्र  करो
दामन  आज   भिगोना   है

जिसकी   मर्ज़ी   वो   खेले
दिल क्या एक  खिलौना है

उसको दिल  क्यों दूँ अपना
जिसको इक दिन खोना है

सारी    दुनिया    है   चाँदी
मेरी   माँ    तो   सोना   है।

- रघुनंदन शर्मा

( आभार - जोगी )

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