ये मस्तो की प्रेम सभा है, यहा संभलकर आना जी......
माना कि लुटाए रातों को गुलज़ार में मोती शबनम ने जब सुब्ह हुई सूरज निकला तो जेब थी ख़ाली फूलों की
- नूह नारवी
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