ये मस्तो की प्रेम सभा है, यहा संभलकर आना जी......
कभी बादल, कभी कश्ती, कभी गर्दांब लगे, वो बदऩ जब भी सजे, कोई नया ख्वाब़ लगे__!
_____निदा फ़ाज़ली
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