ये मस्तो की प्रेम सभा है, यहा संभलकर आना जी......
कल अपनी पीठ से निगाहें मिली . . . . . अनगिनत ख़ंज़र और थोड़ी सी शबाशिया पड़ी मिली . ! ! ~नमालूम
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