Saturday, April 30, 2016

मुहब्बत

ये मुहब्बत की चोट भी क्या खूब है...

इंसान भी मर जाता है और कातिल भी प्यारा लगता है.

Friday, April 8, 2016

मुकेश  मणियार

तो यह शिल्प जरूर
" ईश्वर " ने ही
बनाया होगा ।
   ----  मुकेश  मणियार  ।

Saturday, April 2, 2016

तुम न जाने किस जहाँ में खो गए...

तुम न जाने किस जहाँ में खो गए
हम भरी दुनिया में तनहा हो गए

मौत भी आती नहीं, आस भी जाती नहीं
दिल को यह क्या हो गया, कोई शैय भाती नहीं
लूट कर मेरा जहाँ, छुप गए हो तुम कहाँ

एक जाँ और लाख ग़म, घुट के रह जाए न दम
आओ तुम को देख लें, डूबती नज़रों से हम
लूट कर मेरा जहाँ, छुप गए हो तुम कहाँ

तुम न जाने किस जहाँ में खो गए
हम भरी दुनिया में तनहा हो गए
-साहिर लुधियानवी

न रवा कहिये न सज़ा कहिय.

न रवा कहिये न सज़ा कहिये
कहिये कहिये मुझे बुरा कहिये

दिल में रखने की बात है ग़म-ए-इश्क़
इस को हर्गिज़ न बर्मला कहिये

वो मुझे क़त्ल कर के कहते हैं
मानता ही न था ये क्या कहिये

आ गई आप को मसिहाई
मरने वालो को मर्हबा कहिये

होश उड़ने लगे रक़ीबों के
"दाग" को और बेवफ़ा कहिये
-दाग़ देहलवी

कबीर

1.

अरे दिल,

प्रेम नगर का अंत न पाया, ज्‍यों आया त्‍यों जावैगा।।

सुन मेरे साजन सुन मेरे मीता, या जीवन में क्‍या क्‍या बीता।।

सिर पाहन का बोझा लीता, आगे कौन छुड़ावैगा।।

परली पार मेरा मीता खडि़या, उस मिलने का ध्‍यान न धरिया।।

टूटी नाव, उपर जो बैठा, गाफिल गोता खावैगा।।

दास कबीर कहैं समझाई, अंतकाल तेरा कौन सहाई।।

चला अकेला संग न कोई, किया अपना पावैगा।

2.

रहना नहीं देस बिराना है।

यह संसार कागद की पुड़िया, बूँद पड़े घुल जाना है।

यह संसार काँटे की बाड़ी, उलझ-पुलझ मरि जाना है।

यह संसार झाड़ और झाँखर, आग लगे बरि जाना है।

कहत कबीर सुनो भाई साधो, सतगुरू नाम ठिकाना है।
-कबीर

तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो...

तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो

तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है

किसी दुख का किसी चेहरे से अंदाज़ा नहीं होता

शजर तो देखने में सब हरे मालूम होते हैं

ज़रूरत से अना का भारी पत्थर टूट जात है

मगर फिर आदमी भी अंदर—अंदर टूट जाता है

मोहब्बत एक ऐसा खेल है जिसमें मेरे भाई

हमेशा जीतने वाले परेशानी में रहते हैं

फिर कबूतर की वफ़ादारी पे शल मत करना

वह तो घर को इसी मीनार से पहचानता है

अना की मोहनी सूरत बिगाड़ देती है

बड़े—बड़ों को ज़रूरत बिगाड़ देती है

बनाकर घौंसला रहता था इक जोड़ा कबूतर का

अगर आँधी नहीं आती तो ये मीनार बच जाता

उन घरों में जहाँ मिट्टी के घड़े रहते हैं

क़द में छोटे हों मगर लोग बड़े रहते हैं

प्यास की शिद्दत से मुँह खोले परिंदा गिर पड़ा

सीढ़ियों पर हाँफ़ते अख़बार वाले की तरह
-मुनव्वर राना

लाओ अपना हाथ मेरे हाथ में दो

लाओ अपना हाथ मेरे हाथ में दो

नए क्षितिजों तक चलेंगे

हाथ में हाथ डालकर

सूरज से मिलेंगे

इसके पहले भी

चला हूं लेकर हाथ में हाथ

मगर वे हाथ

किरनों के थे फूलों के थे

सावन के

सरितामय कूलों के थे

तुम्हारे हाथ

उनसे नए हैं अलग हैं

एक अलग तरह से ज्यादा सजग हैं

वे उन सबसे नए हैं

सख्त हैं तकलीफ़देह हैं

जवान हैं

मैं तुम्हारे हाथ

अपने हाथों में लेना चाहता हूं

नए क्षितिज

तुम्हें देना चाहता हूं

खुद पाना चाहता हूं

तुम्हारा हाथ अपने हाथ में लेकर

मैं सब जगह जाना चाहता हूं !

दो अपना हाथ मेरे हाथ में

नए क्षितिजों तक चलेंगे

साथ-साथ सूरज से मिलेंगे !
-भवानीप्रसाद मिश्र