Saturday, April 2, 2016

लाओ अपना हाथ मेरे हाथ में दो

लाओ अपना हाथ मेरे हाथ में दो

नए क्षितिजों तक चलेंगे

हाथ में हाथ डालकर

सूरज से मिलेंगे

इसके पहले भी

चला हूं लेकर हाथ में हाथ

मगर वे हाथ

किरनों के थे फूलों के थे

सावन के

सरितामय कूलों के थे

तुम्हारे हाथ

उनसे नए हैं अलग हैं

एक अलग तरह से ज्यादा सजग हैं

वे उन सबसे नए हैं

सख्त हैं तकलीफ़देह हैं

जवान हैं

मैं तुम्हारे हाथ

अपने हाथों में लेना चाहता हूं

नए क्षितिज

तुम्हें देना चाहता हूं

खुद पाना चाहता हूं

तुम्हारा हाथ अपने हाथ में लेकर

मैं सब जगह जाना चाहता हूं !

दो अपना हाथ मेरे हाथ में

नए क्षितिजों तक चलेंगे

साथ-साथ सूरज से मिलेंगे !
-भवानीप्रसाद मिश्र

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