Monday, February 8, 2016

हुआ सवेरा 

हुआ सवेरा / निदा फ़ाज़ली

हुआ सवेरा 
ज़मीन पर फिर अदब 
से आकाश 
अपने सर को झुका रहा है 
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं 
नदी में स्नान करने सूरज
सुनारी मलमल की 
पगड़ी बाँधे 
सड़क किनारे 
खड़ा हुआ मुस्कुरा रहा है 
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं 
हवाएँ सर-सब्ज़ डालियों में 
दुआओं के गीत गा रही हैं 
महकते फूलों की लोरियाँ 
सोते रास्तों को जगा रही 
घनेरा पीपल,
गली के कोने से हाथ अपने 
हिला रहा है 
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं 
फ़रिश्ते निकले रोशनी के 
हर एक रस्ता चमक रहा है 
ये वक़्त वो है 
ज़मीं का हर ज़र्रा 
माँ के दिल सा धड़क रहा है 
पुरानी इक छत पे वक़्त बैठा
कबूतरों को उड़ा रहा है
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं 
बच्चे स्कूल जा रहे हैं.

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