Thursday, February 4, 2016

शिवालों मस्जिदों को छोड़ता क्यों नहीं।
ख़ुदा है तो रगों में दौड़ता क्यों नहीं।

लहूलुहान हुए हैं लोग तेरी ख़ातिर,
ख़ामोशी के आलम को तोड़ता क्यों नहीं।

कहदे की नहीं है तू गहनों से सजा पत्थर,
आदमी की ज़हन को झंझोड़ता क्यों नहीं,

पेटुओं के बीच कोई भूखा क्यों रहे,
अन्याय की कलाई मरोड़ता क्यों नहीं।

झुग्गियाँ ही क्यों महल क्यों नहीं,
बाढ़ के रुख को मोड़ता क्यों नहीं।
~प्रकाश बादल

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