Tuesday, November 22, 2016

Zubair Ali Tabish

No words Zubair bhai

मेरे  बादल  ने  कहीं और  लुटाई  बारिश
अब मेरा जिस्म भिगोती  है पराई बारिश

میرے بادل نے کہیں اور لٹائی بارش
اب مِرا جسم بھگوتی  ہے  پرائی  بارش

मुद्दतों बाद मुझे प्यास का अहसास हुआ
मुद्दतों  बाद  मेरे ख्वाब  में  आई   बारिश

مدّتوں  بعد مجھے  پیاس کا  احساس  ہوا
مدّتوں بعد مِرے خواب میں آئی بارش

उसके रूमाल की ख्वाहिश में बहाए आंसू
मैंने  छत्री  के  लिए  ख़ास  बुलाई  बारिश

اسکے روْمال کی خواہش  میں بہائے  آنسو
میں نے چھتری کےلئے خاص بلائی بارش

अब्र ने अपना ही मोहताज बना रक्खा था
धूप ने  जिस्म  के अंदर  से उगाई  बारिश

ابر   نے   اپنا   ہی  محتاج  بنا  رکھا  تھا
دھوپ نے جسم کے اندر سے اگائی بارش

Zubair Ali Tabish

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