Monday, September 26, 2016

विवेक वोरा

सालों के बीत जाने से
कहाँ वक़्त गुज़रता है ?

लम्हा-लम्हा वक़्त के बुलबुले
तैरते रहते हैं ता-अबद
भटकते रहते हैं खाना-बदोश
जिप्सियों की तरह
और ठहर जाते हैं लम्हाती
ये लम्हे ज़ेहन में
यादों की तरतीब
और सालों के फ़ासले मिट जाते हैं
बस एक लम्हे में
सालों के बीत जाने से
कहाँ वक़्त गुज़रता है ?

मैं अक्सर चला जाता हूँ
मिलने तुमसे
वही शाम
वही समंदर
वही तुम

लोग कहते हैं
बारह साल गुज़र गए
ना-समझ
सालों के बीत जाने से
कहाँ वक़्त गुज़रता है ?

-विवेक वोरा

#smvdiary

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