अलविदा निदा साहेब----सलाम
अपनी मज़ॅी से कहाँ अपने सफर के हम हैं
रुख हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं।
-------------निदा फ़ाज़ली
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो युं कर ले ;
किसी रोते हुए बच्चों को हसाया जाए ।
गिनतियों में ही गिने जाते हैं हर दौर में हम
हर क़लमकार की बेनाम ख़बर के हम है ।
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