ये मस्तो की प्रेम सभा है, यहा संभलकर आना जी......
ये लहराती जुल्फें... ये दो कज़रारे नैन.. और ये रसीलें होठ.. औजार तो सब पूरे है... बस "कत़्ल" होना बाकी है..
No comments:
Post a Comment