ये मस्तो की प्रेम सभा है, यहा संभलकर आना जी......
तेरा मेरा शीशेका घर , मै भी सोचुं तुं भी सोच , कयुं दोनोके हाथमे पत्थर, मै भी सोचुं तुं भी सोच । -निदा फाजली
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