ये मस्तो की प्रेम सभा है, यहा संभलकर आना जी......
फुरसत किसे है जख्मो को सराहने कि, निगाहे बदल जाती है अपने बेगानो कि,
तुम भी छोड कर चले गए हमे, अब तम्मना न रही किसी से दिल लगाने कि
No comments:
Post a Comment