ये मस्तो की प्रेम सभा है, यहा संभलकर आना जी......
वरना ये तेज़ धूप तो चुभती हमें भी है हम चुप खड़े हुए हैं कि तू सायबाँ में है ___
(परवीन शाक़िर )
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