ये मस्तो की प्रेम सभा है, यहा संभलकर आना जी......
आँखों में आंशु कि लकीर बन गयी, कभी न सोचा था ऐसी तक़दीर बन गयी, हमने तो यु ही राखी थी रेत पे उंगलिया, गौर से देखा तो आप कि तस्वीर बन गयी.
No comments:
Post a Comment