Friday, February 12, 2016

अगर यकीं नहीं आता तो आजमाए मुझे

अगर यकीं नहीं आता तो आजमाए मुझे
वो आईना है तो फिर आईना दिखाए मुझे
अज़ब चिराग़ हूँ दिन-रात जलता रहता हूँ
मैं थक गया हूँ हवा से कहो बुझाए मुझे
मैं जिसकी आँख का आँसू था उसने क़द्र न की
बिखर गया हूँ तो अब रेत से उठाए मुझे
बहुत दिनों से मैं इन पत्थरों में पत्थर हूँ
कोई तो आये ज़रा देर को रुलाए मुझे
मैं चाहता हूँ के तुम ही मुझे इजाज़त दो
तुम्हारी तरह से कोई गले लगाए मुझे
- बशीर बद्र

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